Statue Of Equality – हैदराबाद में 216 फीट ऊंची ‘स्टैच्यू ऑफ इक्वैलिटी’ प्रतिमा का अनावरण, राष्ट्र को समर्पित

Hyderabad, Telangana : PM Modi आज 11वीं सदी के भक्ति शाखा के संत श्री रामानुजाचार्य की स्मृति में ‘स्टैच्यू ऑफ इक्वैलिटी’ (Statue of Equality) की 216 फीट ऊंची प्रतिमा का अनावरण किया। बैठी हुई मुद्रा में यह दुनिया में धातु की सबसे लंबी प्रतिमा है। यह प्रतिमा ‘पंचधातु’ से बनी है, जिसमें सोना, चांदी, तांबा, पीतल और जस्ता का एक संयोजन है।

Statue of Equality
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पीएमओ के मुताबिक यह 54-फीट ऊंचे आधार भवन पर स्थापित है, जिसका नाम ‘भद्र वेदी’ है। इसके भीतर की मंजिलों में वैदिक डिजिटल पुस्तकालय, अनुसंधान केंद्र, एक थियेटर और श्री रामानुजाचार्य के कामों का विवरण देने वाली एक शैक्षणिक गैलरी भी बनाई गई है। इसकी परिकल्पना श्री रामानुजाचार्य आश्रम के चिन्ना जीयर स्वामी ने तैयार किया है।

पीएम मोदी ने कहा, ‘आज मां सरस्वती की आराधना के पावन पर्व, बसंत पंचमी का शुभ अवसर है। मां शारदा के विशेष कृपा अवतार श्री रामानुजाचार्य जी की प्रतिमा इस अवसर पर स्थापित हो रही है।’ जगद्गुरु श्री रामानुजाचार्य जी की इस भव्य विशाल मूर्ति के जरिए भारत मानवीय ऊर्जा और प्रेरणाओं को मूर्त रूप दे रहा है। रामानुजाचार्य जी की ये प्रतिमा उनके ज्ञान, वैराग्य और आदर्शों की प्रतीक है।

कौन हैं रामानुजाचार्य स्वामी?

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श्री रामानुजाचार्य 11वीं सदी के हिंदू धर्मशास्त्री और दार्शनिक थे। वह भक्ति आंदोलन के सबसे बड़े प्रेरक शक्ति और सभी मनुष्यों की समानता के सबसे पहले समर्थक थे। रामानुजाचार्य स्वामी का जन्म 1017 में तमिलनाडु के श्रीपेरंबुदूर में हुआ था. उनके माता का नाम कांतिमती और पिता का नाम केशवचार्युलु था।

उन्होंने विशिष्टाद्वैत विचारधारा की व्याख्या की और मंदिरों को धर्म का केंद्र बनाया. रामानुज को यमुनाचार्य द्वारा वैष्णव दीक्षा में दीक्षित किया गया था. उनके परदादा अलवंडारू श्रीरंगम वैष्णव मठ के पुजारी थे. ‘नांबी’ नारायण ने रामानुज को मंत्र दीक्षा का उपदेश दिया. तिरुकोष्टियारु ने ‘द्वय मंत्र’ का महत्व समझाया और रामानुजम को मंत्र की गोपनीयता बकरार रखने के लिए कहा, लेकिन रामानुज ने महसूस किया कि ‘मोक्ष’ को कुछ लोगों तक सीमित नहीं रखा जाना चाहिए, इसलिए वह पुरुषों और महिलाओं को समान रूप से पवित्र मंत्र की घोषणा करने के लिए श्रीरंगम मंदिर गोपुरम पर चढ़ गए।

रामानुजाचार्य स्वामी यह साबित करने वाले पहले आचार्य थे कि सर्वशक्तिमान के सामने सभी समान हैं. उन्होंने दलितों के साथ कुलीन वर्ग के समान व्यवहार किया. उन्होंने छुआछूत और समाज में मौजूद अन्य बुराइयों को जड़ से उखाड़ फेंका. स्वामी जी ने सभी को भगवान की पूजा करने का समान विशेषाधिकार दिया. उन्होंने तथाकथित अछूत लोगों को “थिरुकुलथार” कहा. इसका अर्थ है “दिव्य जन्म” और उन्हें मंदिर के अंदर ले गए. उन्होंने भक्ति आंदोलन का बीड़ा उठाया और दर्शन की वकालत की जिसने कई भक्ति आंदोलनों का आधार बनाया।

200 एकड़ से अधिक जमीन पर बनाई गई है प्रतिमा, मेगा प्रोजेक्ट पर 1000 करोड़ रुपए की लागत आई है. प्रतिमा बनाने में 1800 टन से अधिक पंच लोहा का उपयोग किया गया है. पार्क के चारों ओर 108 दिव्यदेशम या मंदिर बनाए गए हैं. पत्थर के खंभों को राजस्थान में विशेष रूप से तराशा गया है।

रामानुज सभी वर्गों के लोगों के बीच सामाजिक समानता के हिमायती थे। उन्होंने ऊंच-नीच का भेद हटाते हुए समाज की सभी जातियों के लिए मंदिर के दरवाजे खोलने को प्रोत्साहित किया। उस समय कई जाति के लोगों को मंदिर में घुसने नहीं दिया जाता था। उन्होंने शिक्षा को उन लोगों तक पहुंचाया जो इससे वंचित थे। इसलिए इसे स्टैच्यू ऑफ इक्वैलिटी नाम दिया गया।

रामानुज का सबसे बड़ा योगदान ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ की अवधारणा का प्रचार है, जिसका अनुवाद है- सारा ब्रह्मांड एक परिवार है। उन्होंने हाशिए पर पड़े लोगों को गले लगाया और निंदा की, और शाही अदालतों से उनके साथ समान व्यवहार करने को कहा। उन्होंने ईश्वर की भक्ति, करुणा, विनम्रता, समानता और आपसी सम्मान के माध्यम से सार्वभौमिक मोक्ष की बात की, जिसे श्री वैष्णव संप्रदाय के रूप में जाना जाता है। वैष्णव संप्रदाय के संत चिन्ना जीयर स्वामी ने अनुसार, ‘स्टैच्यू ऑफ इक्वैलिटी’ के विचार के पीछे रामानुजाचार्य का सामाजिक दर्शन है जो जाति व्यवस्था की सीमाओं को पार करने और पूरी मानवता को गले लगाने पर जोर देता है।

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